गरीबी, हिंसा, भेदभाव से बचने और सम्मान पाने की खातिर हिंदू इस्लाम कुबूल करने को मजबूर, कोरोना ने आर्थिक हालात खराब किए

मारिया अबि-हबीब/जिया उर-रहमान. बीते साल भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के शहर कराची में एक विरोध रैली निकली थी। इस रैली में शामिल लोग देश में हिंदू लड़कियों के जबरन कराए जा रहे धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे थे। जून में भी सिंध प्रांत के बदीन जिले में दर्जनों हिंदू परिवारों ने इस्लाम धर्म को कुबूल कर लिया। इस समारोह का वीडियो क्लिप भी वायरल हुआ था। हालांकि, पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन का सटीक डाटा मौजूद नहीं है। यहां कुछ परिवर्तन मन से किए गए तो कुछ मजबूरी में।

भेदभाव से बचने के लिए बनना पड़ा मुसलमान
सेकंड क्लास सिटिजन माने जाने वाले पाकिस्तानी के हिंदुओं को हर चीज के लिए भेदभाव का सामना करना पड़ता है। फिर चाहे वो रहने के लिए घर, नौकरी या सरकारी सुविधा हों। अल्पसंख्यकों को लंबे वक्त से बहुसंख्यकों में जुड़ने, भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा से बचने के लिए तैयार किया जा रहा है।

मोहम्मद असलम शेख जून तक सावन भील के नाम से पहचाने जाते थे। उन्होंने कहा, "हम जो चाह रहे हैं वो सामाजिक हैसियत है, और कुछ नहीं। गरीब हिंदू समुदायों में ये परिवर्तन बेहद आम हैं।" असलम ने भी बदीन में परिवार के साथ इस्लाम को अपनाया। बदीन में हुआ यह आयोजन अपने आकार के लिए भी खास था। यहां 100 से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। मुस्लिम धर्मगुरू और चैरिटी समूह अल्पसंख्यकों को फुसलाते हैं और नौकरी या जमीन देने की पेशकश करते हैं, लेकिन तभी जब वे धर्म बदलेंगे।

कोरोनावायरस में बढ़ा अल्पसंख्यकों पर दबाव
कोरोनावायरस महामारी के दौरान पाकिस्तान की इकोनॉमी की हालत खराब हो गई है और इसका दबाव देश के अल्पसंख्यकों पर पड़ा है। वर्ल्ड बैंक ने अनुमान लगाया है कि वित्तीय वर्ष 2020 में अर्थव्यवस्था 1.3 प्रतिशत कम हो जाएगी और पाकिस्तान की 7.4 करोड़ नौकरियों में से 1.8 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं।

अपने लोगों की मदद करने के लिए बहुत कम हिंदू बचे हैं
असलम और उनके परिवार को उन अमीर मुस्लिम या इस्लामिक चैरिटी से मदद मिलने की उम्मीद है, जो और लोगों को इस्लाम में लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। असलम का कहना है, "इसमें कुछ गलत नहीं है। सभी लोग अपने धर्म के लोगों की मदद करते हैं।" जैसा कि असलम इसे देखते हैं, पाकिस्तान के अमीर हिंदुओं के पास अपने धर्म के लोगों की मदद के लिए कुछ भी नहीं बचा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बहुत कम हिंदू बचे हैं।

2018 में मिठी स्थित श्री कृष्ण मंदिर में हिंदू।
(रिजवान तबस्सुम/ एजेंसी फ्रांस-प्रेस)

1947 के बाद से लगातार कम हुई आबादी

  • 1947 में आजादी के बाद अब पाकिस्तान में शामिल इलाकों में 20.5 फीसदी हिंदू आबादी थी। आने वाले दशकों में यह प्रतिशत तेजी से कम हुआ और 1998 में पाकिस्तान की आबादी में हिंदू केवल 1.6 फीसदी रह गए थे। कई लोगों ने अनुमान लगाया है कि यह संख्या बीते दो दशकों में और कम हुई है।
  • हाल ही के दशकों में सिंध प्रांत से अल्पसंख्यकों को झुंड में दूसरे देशों में जाते देखा गया है। कई लोगों ने बहुत ही गंभीर भेदभाव और हिंसा का डर महसूस किया। पूर्व पाकिस्तानी लॉ मेकर और अब वॉशिंगटन में रिसर्च समूह रिलीजियस फ्रीडम इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ सदस्य फराहनाज इस्पहानी कहती हैं, "महामारी और कमजोर अर्थव्यवस्था के इस डरावने समय में अल्पसंख्यकों के साथ अमानवीय व्यवहार बढ़ा है। हम भूख, हिंसा को टालने या केवल जिंदा रहने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को इस्लाम में बदलते देख सकते हैं।"
  • फराहनाज 2010 में सिंध प्रांत में आई भयंकर बाढ़ के समय को याद करती हैं। इस बाढ़ में हजारों लोग बेघर हो गए थे और बहुत थोड़ा ही खाने को नहीं बचा था। फराहनाज बताती हैं कि हिंदुओं को मुसलमानों के साथ सूप किचन में खाने की अनुमति नहीं थी और जब सरकार से मदद मिली तो हिंदुओं को अपने पाकिस्तानी साथियों से कम मदद मिली। क्या वे उनकी आत्मा और दिल को भी परिवर्तित कर रहे हैं? मुझे नहीं लगता।
  • फराहनाज और कई लोग इस बात पर चिंता जताते हैं कि महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की तबाही संप्रदायिक हिंसा को बढ़ा सकती है और इससे अल्पसंख्यकों पर धर्म बदलने का दबाव बढ़ेगा।

सरकारी अधिकारी नहीं मानते भेदभाव की बात
सिंध के मुख्यमंत्री के सलाहकार मुर्तजा वहाब उन सरकारी अधिकारियों में से एक हैं जो यह कहते हैं कि वे फराहनाज के हिंदुओं को कम मदद मिलने के आरोपों संबोधित नहीं कर सकते। वहाब ने कहा, "हिंदू समुदाय हमारे समाज का अहम हिस्सा हैं और हमारा मानना है कि सभी धर्मों के लोगों को बिना किसी परेशानी के साथ रहना चाहिए।"

पाकिस्तान में महफूज महसूस नहीं करते धार्मिक अल्पसंख्यक

  • मजबूरी में शादी और अपहरण के जरिए हिंदू लड़कियों और महिलाओं के जबरन धर्म बदलने का काम पूरे पाकिस्तान में हो रहा है। इसके अलावा हिंदू अधिकार समूह मन से हो रहे धर्म परिवर्तनों को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है यह परिवर्तन ऐसे आर्थिक दबावों के हो रहे हैं जो जबरन धर्म बदलने के ही बराबर हैं।
  • पाकिस्तान के हिंदू लॉ मेकर लाल चंद महली का कहना है, "कुल मिलाकर पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षित महसूस नहीं होता है। इनमें भी गरीब हिंदू सबसे बुरी हालत में हैं। वे इतने गरीब और अनपढ़ हैं कि मुस्लिम मस्जिदें, चैरिटीज और व्यापारी उनका शोषण आसानी से कर लेते हैं और उन्हें इस्लाम में परिवर्तन करने के लिए लुभाते हैं। इसमें बहुत पैसा शामिल है।"
  • मोहम्मद नईम खान जैसे मौलवी ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं के धर्म परिवर्तन कराने के प्रयासों में सबसे आगे थे। (नईम खान 62 साल के थे और इंटरव्यू के दो हफ्ते बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी।) नईम कहते हैं कि उन्होंने बीते दो सालों में कराची स्थित अपने मदरसे जामिया बिनोरिया में 450 से ज्यादा धर्म परिवर्तन देखे हैं। धर्म बदलने वाले ज्यादातर लोग सिंध प्रांत के निम्न जाति के हिंदू थे।
  • नईम बताते हैं कि "हम उन्हें धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं। लोग हमारे पास आते हैं क्योंकि वे अपनी जाति के साथ जुड़े भेदभाव से बचना चाहते हैं और अपनी सामाजिक हैसियत को बदलना चाहते हैं।" उन्होंने बताया कि इसकी मांग इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने अपने मदरसे में एक अलग से विभाग बनाया था जो धर्म बदलने वाले नए लोगों को आर्थिक और कानून सलाह देते थे।

बंधुआ मजदूरी का शिकार होते हैं, निम्न जाति के पाकिस्तानी हिंदू
हाल ही में एक समारोह आयोजित हुआ, जहां सिंध स्थित मतली में लगे तंबुओं में अजान सुनाई दी। यह जमीन कराची के एक अमीर मुस्लिम व्यापारी समूह ने धर्म बदलने वाले दर्जनों हिंदू परिवारों के लिए खरीदी थी। टेंट के पास ही एक मस्जिद में मोहम्मद अली प्रार्थना से पहले रस्म अदा कर रहे थे। मोहम्मद अली का पहले नाम राजेश था। उन्होंने पिछले साल 205 अन्य लोगों के साथ धर्म बदल लिया था।

बीते साल मौलवी नईम ने अली के सामने बंधुआ मजदूरी से आजाद कराने की पेशकश के बाद उन्होंने अपने परिवार के साथ इस्लाम में धर्म परिवर्तन कर लिया था। वे एक जगह उधारी नहीं चुकाए जाने के कारण नौकर के तौर पर काम कर रहे थे। अली भील जाति से आते हैं, जो निम्न हिंदुओं में से एक है। उन्होंने कहा, "इस्लाम में हमें एकता और भाईचारे का एहसास हुआ, इसलिए हम बदलकर यहां आ गए।"

सिंध प्रांत स्थित मिठी में श्री कृष्ण का मंदिर।
(रिजवान तबस्सुम/ एजेंसी फ्रांस-प्रेस)

निम्न जाति के पाकिस्तानी हिंदू कई बार बंधुआ मजदूरी के शिकार होते हैं। 1992 में इसे रद्द कर दिया गया था, लेकिन यह प्रथा अभी भी जारी है। ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स ने अनुमान लगाया है कि 30 लाख से ज्यादा पाकिस्तानी उधारी के कारण गुलामी में रहते हैं।

गरीब हिंदुओं को ऐसा उधार दिया जाता है जो वे कभी चुका नहीं सकते
अधिकार समूह कहते हैं कि जमींदार हिंदुओं को ऐसा कर्ज देकर गुलामी में फंसाते है, जिसे वे जानते हैं कि यह कभी नहीं चुकाया जा सकता। इसके बाद उन्हें और उनके परिवार को उधारी चुकाने के लिए काम के लिए मजबूर किया जाता है। कई बार महिलाओं का यौन शोषण भी होता है।

नईम के मदरसे ने कई हिंदुओं को बंधुआ मजदूरी से आजाद कराया है। उन्होंने इस्लाम में शामिल होने के बदले उनका कर्ज खत्म किया। जब अली और उनके परिवार ने धर्म बदला तो नईम और अमीर मुस्लिम व्यापारी समूहों ने उन्हें जमीन का एक टुकड़ा दिया और काम खोजने में मदद की। उन्होंने इसे एक इस्लामी जिम्मेदारी समझी। नईम कहते थे "जो लोग इस संदेश को फैलाने और गैर मुस्लिमों को इस्लाम में लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, उन्हें भविष्य में आशीर्वाद मिलेगा।"



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फोटो बीते साल कराची में हिंदू लड़कियों के जबरन इस्लाम में परिवर्तन कराने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की है। (फरीद खान/एसोसिएटेड प्रेस)


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