इन तीन महिलाओं ने देश में बनाया मुकाम, कमा रही लाखों रुपए

'प्रथम'

शिक्षिका नहीं, पशुपालन चुना

अमूमन महिलाओं के लिए शिक्षिका की नौकरी को आजीविका का बेहतर साधन माना जाता है, लेकिन वह एक अच्छी कारोबारी भी हो सकती हैं। यह मानना है तमिलनाडु के करूर जिला निवासी एस. सुधा (34) का। दक्षिण जोन की सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार पाने वाली सुधा ने एमएससी (वनस्पति शास्त्र) और बीएड की पढ़ाई के बावजूद पशुपालन व्यवसाय को अपनी आजीविका चुना।
उन्होंने बताया कि उनके परिवार के सदस्य पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं। शादी के बाद उन्होंने शिक्षिका की नौकरी की बजाय, पशुपालन व्यवसाय करने की ठानी। चुनौतीपूर्ण कारोबार होने के बावजूद सुधा के ससुराल पक्ष ने इस फैसले में उनका साथ दिया। कभी छोटे स्तर से शुरुआत करने वाली सुधा के पास अभी 70 गाय और बकरियां हैं। स्वावलंबी बनने के साथ ही इस कदम से उन्होंने गांव की कई महिलाओं को रोजगार दिया है तथा आज उनकी मासिक आय करीब दो लाख रु. प्रतिमाह है।


'द्यितीय'

पशुपालन को चुना व्यवसाय, कमा रही लाखों रुपए सालाना

हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही महिलाएं अब उनके एकाधिकार का क्षेत्र माने जाने वाले पशुपालन व्यवसाय में भी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। वहीं, घरेलू उपयोग के लिए गाय-भैंस पालने के बजाय कुछ महिलाओं ने इसे व्यवसाय के रूप में चुनकर खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है। अब वे हर महीने लाखों रुपए कमाने के साथ ही दूसरों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनी हैं। ऐसी ही उपलब्धियों के लिए इन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है।
जयपुर में आयोजित डेयरी इंडस्ट्री के राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में गुरुवार को रांची (झारखंड) की बबीता देवी, तमिलनाडु की एस. सुधा, गुजरात की लक्ष्मी बेन और पंजाब की कमल प्रीत कौर को सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया।

दो गाय से शुरुआत पचास हजार की आय
महिलाओं में सशक्त बनने की चाह हो तो वह हर मुश्किलों को पार कर लक्ष्य पा लेती हैं। पूर्व जोन की सर्वश्रेष्ठ महिला डेयरी किसान पुरस्कार से सम्मानित बबीता देवी ने यह बात कही।? उन्होंने बताया कि सरकार से ऋण लेकर 2007 में दो गाएं खरीदीं। धीरे-धीरे अपनी मेहनत के बूते आज उनके पास तेरह गाय हैं। इनसे उपलब्ध दूध को बेचकर वह प्रतिमाह करीब पचास हजार रुपए कमाती हैं।

रांची की बबीता देवी, तमिलनाडु की एस. सुधा, गुजरात की लक्ष्मी बेन और पंजाब की कमल प्रीत कौर को मिला था पुरस्कार


'तृतीय'
स्विगी की पहली महिला डिलीवरी पार्टनर अश्विनी

देश में आज महिलाएं भी किसी काम में पीछे नहीं है। खेल, सेना, पुलिस और टैक्सी चलाने से लेकर हर एक काम को आसानी से कर लेती हैं। इनमें ही शामिल हैं पहली महिला डिलीवरी पार्टनर अश्विनी नंदकिशोर। अश्विनी बेंगलूरु के संकरे रास्तों और ट्रैफिक से भरी सड़कों पर सुबह 9 बजे से 6 बजे तक सरपट गाड़ी चलाकर खाना डिलीवर करती है। अश्विनी का कहना है कि वह परंपरागत और रुढि़वादी की दीवारों को तोड़ रही हैं। नौकरी छोटी या बड़ी नहीं होती है और महिलाएं कोई भी काम कर सकती हैं। इस काम में उनके पति और मां का भी पूरा सपोर्ट रहता है।

इस काम में मिलती है खुशी : गुजरात के वडोदरा में जन्मीं और पली बढ़ीं अश्विनी की 10वीं तक पढऩे के बाद शादी कर दी गई। इसके बाद वे एक कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी करने लगीं, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा। अश्विनी कहती है कि वह काम तो कुछ भी कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने खाना डिलीवर करने को ही अपना पेशा चुना और आज वह इस काम में खुशी भी महसूस करती हैं।

कई प्रयास के बाद मिली नौकरी
अश्विनी का कहना है कि उन्होंने इस नौकरी के लिए कई जगह प्रयास किया तो कहा गया कि यह काम पुरुष ही करते हैं। इसके बाद स्विगी में डिलीवरी एग्जिक्यूटिव की नौकरी मिली। जब मैंने इस काम को शुरू किया था तो लोगों ने मुझे काफी सराहा और मेरा उत्साह बढ़ाया। अश्विनी गुजरात में स्विगी के साथ डिलिवरी पार्टनर के तौर पर काम करने वाली वो पहली महिला थीं। अश्विनी अभी स्विगी के साथ फुल टाइम काम कर रही है और दिन में 18 डिलीवरी करती हैं।



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